गोपाल कवचम् फ्री में डाउनलोड करे और दूर करे सभी बाधाये

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गोपाल कवचम् फ्री में डाउनलोड करे और दूर करे सभी बाधाये

श्री गोपाल कवच (Gopal Kavacham) का उल्लेख नारद पंचरात्र में किया गया है या फिर आप ऐसा समझे हैं कि यह कवच नारद पंचरात्र में आपको मिल सकता है । श्री गोपाल कवच माता पार्वती जी को भगवान शिव के द्वारा सुनाया गया था जो भक्त श्री गोपाल कवच (Gopal Kavacham)  का पाठ प्रतिदिन करता है वह अपने सभी कष्टों और दुखों से मुक्त हो जाता है जो क्लेश उसके दुश्मनों द्वारा या फिर किसी ग्रह के कारण हो रहा हो । ग्रहों की बुरी से बुरी दशा से छुटकारा पाने के लिए या फिर कोई भी मुसीबत जो आप सभी को परेशान कर रही हो उससे बचने के लिए और यदि आप पर कोई नजर लग गई है या कोई जादू टोना हुआ है और या फिर कोई भी बुरी दुष्ट प्रवृत्ति से आपका मन विचलित है तो इन सभी चीजों को समाप्त करने के लिए गोपाल कवचम् का पाठ किया जाता है ।

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इसे करने की विधि बहुत आसान है इसे करने के लिए आपको भगवान कृष्ण के बाल गोपाल रूप की प्रतिमा को अपने सामने रखना होगा और उसका पूजन करना होगा। उसके पश्चात आपको उस प्रतिमा को माखन मिश्री का भोग अर्पित करना पड़ेगा। इस स्तोत्र का परायण करते समय भगवान के बाल गोपाल के साथ भोजन करते हुए स्वरूप का ध्यान करें इससे आपको अति शीघ्र लाभ मिलेगा ।

Free Download Gopal Kavacham Stotra

आप इसे यंहा से पढ़ भी सकते है और साथ ही डाउनलोड भी कर सकते है | डाउनलोड करने के लिए निचे दिए गए बटन पर क्लिक करे और गोपाल कवचम आप के लिए हिंदी में स्वत ही डाउनलोड हो जायेगा |

गोपाल कवचम यहाँ से डाउनलोड कीजिये

श्रीगोपालकवचम् 

श्रीगणेशाय नमः ॥ 

श्रीमहादेव उवाच ॥ 
अथ वक्ष्यामि कवचं गोपालस्य जगद्गुरोः । 
यस्य स्मरणमात्रेण जीवनमुक्तो भवेन्नरः ॥ १ ॥ 
श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि सावधानावधारय । 
नारदोऽस्य ऋषिर्देवि छंदोऽनुष्टुबुदाह्रतम् ॥ २ ॥ 
देवता बालकृष्णश्र्च चतुर्वर्गप्रदायकः । 
शिरो मे बालकृष्णश्र्च पातु नित्यं मम श्रुती ॥ ३ ॥ 
नारायणः पातु कंठं गोपीवन्द्यः कपोलकम् । 
नासिके मधुहा पातु चक्षुषी नंदनंदनः ॥ ४ ॥ 
जनार्दनः पातु दंतानधरं माधवस्तथा । 
ऊर्ध्वोष्ठं पातु वाराहश्र्चिबुकं केशिसूदनः ॥ ५ ॥ 
ह्रदयं गोपिकानाथो नाभिं सेतुप्रदः सदा । 
हस्तौ गोवर्धनधरः पादौ पीतांबरोऽवतु ॥ ६ ॥ 
करांगुलीः श्रीधरो मे पादांगुल्यः कृपामयः । 
लिंगं पातु गदापाणिर्बालक्रीडामनोरमः ॥ ७ ॥ 
जग्गन्नाथः पातु पूर्वं श्रीरामोऽवतु पश्र्चिमम् । 
उत्तरं कैटभारिश्र्च दक्षिणं हनुमत्प्रभुः ॥ ८ ॥ 
आग्नेयां पातु गोविंदो नैर्ऋत्यां पातु केशवः । 
वायव्यां पातु दैत्यारिरैशान्यां गोपनंदनः ॥ ९ ॥ 
ऊर्ध्वं पातु प्रलंबारिरधः कैटभमर्दनः । 
शयानं पातु पूतात्मा गतौ पातु श्रियःपतिः ॥ १० ॥ 
शेषः पातु निरालम्बे जाग्रद्भावे ह्यपांपतिः । 
भोजने केशिहा पातु कृष्णः सर्वांगसंधिषु ॥ ११ ॥ 
गणनासु निशानाथो दिवानाथो दिनक्षये । 
इति ते कथितं दिव्यं कवचं परमाद्भुतम् ॥ १२ ॥ 
यः पठेन्नित्यमेवेदं कवचं प्रयतो नरः । 
तस्याशु विपदो देवि नश्यंति रिपुसंधतः ॥ १३ । 
अंते गोपालचरणं प्राप्नोति परमेश्र्वरि । 
त्रिसंध्यमेकसंध्यं वा यः पठेच्छृणुयादपि ॥ १४ ॥ 
तं सर्वदा रमानाथः परिपाति चतुर्भुजः । 
अज्ञात्वा कवचं देवि गोपालं पूजयेद्यदि ॥ १५ ॥ 
सर्व तस्य वृथा देवि जपहोमार्चनादिकम् । 
सशस्रघातं संप्राप्य मृत्युमेति न संशयः ॥ १६ ॥ 
॥ इति नारदपंचरात्रे ज्ञानामृतसारे चतुर्थरात्रे श्रीगोपालकवचं संपूर्णम् ॥

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