जब प्रभु श्रीराम भगवान शिव का धनुष तोड़ देते हैं,तब इस बात की सूचना परशुरामजी को मिलती है..... 

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वहां जब वे धनुष को तोड़ने वाले इन्सान को भला बुरा कहने लगते हैं, तब लक्ष्मण जी से रहा नहीं जाता और फिर वे परशुराम जी को कटु वचनों में शिक्षा देने लगते हैं.... 

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जब शिव धनुष टूटने से चारो तरफ खलबली मच गयी और ये सब देख कर जनकपुरी की स्त्रियाँ व्याकुल हो गईं और सब मिलकर राजाओं को गालियाँ देने लगीं.... 

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जिस कारण सब राजा वहा आए थे, राजा जनक ने वे सब समाचार परशुरामजी को बताए और अपनी बेटी के लिये आशीष मागा....  

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श्री रामचन्द्रजी बेहद नम्र आवाज में बोले- हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई एक दास ही होगा। क्या आज्ञा है अपने उस दास के लिये, आप मुझे क्यों नही कहते... 

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हे राम! सुनो, जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान मेरा शत्रु है। वह इस समाज को छोड़कर अलग हो जाए, नहीं तो सभी राजा मारे जाएँगे... 

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लक्ष्मणजी मुस्कुराए और बोले-हे गोसाईं! बचपन में हमने बहुत सी धनुहियाँ तोड़ डालीं, किन्तु आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया। इसी धनुष पर इतनी ममता किस कारण से है..... 

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परशुरामजी कहने लगे| अरे राजपुत्र! काल के वश होने से तुझे बोलने में कुछ भी होश नहीं है। सारे संसार में विख्यात शिवजी का यह धनुष क्या धनुही के समान है...... 

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लक्ष्मणजी कोमल वाणी से बोले- अहो, मुनीश्वर तो अपने को बड़ा भारी योद्धा समझते हैं। बार-बार मुझे कुल्हाड़ी दिखाते हैं। फूँक से पहाड़ उड़ाना चाहते हैं..... 

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भृगुवंशी समझकर और यज्ञोपवीत देखकर तो जो कुछ आप कहते हैं, उसे मैं क्रोध को रोककर सह लेता हूँ... और आगे जानने के लिये Swipe Up करे..... 

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