Foreign Travel Yoga In Astrology
विदेश में जाना किसको नहीं पसंद है सब चाहते है की हम भी विदेश में नौकरी करे और वहां अपनी ज़िन्दगी बिताना चाहते है क्यूंकि विदेश मे सभी सुविधा मिलती है अच्छी नौकरी अच्छा रहन सहन इत्यादि.तो आज हम आपको बताएँगे की क्या आपकी कुंडली में विदेश योग है या नहीं.
Foreign Travel Yoga In Astrology
विदेश में जाने का योग हमारे देश के ज्योतिष के विद्वानों ने बताया है उनके अनुसार जन्मकुंडली से अध्यन से बताया जाता है किसी जातक की कुंडली में विदेश यात्रा का योग है या नहीं यदि किसी भी व्यक्ति की कुंडली में अष्टम भाव,नवं,सप्तम,बारहवां भाव आपके विदेश में जाने का योग दर्शाता है और इससे ही आपके जीवन में विदेश जाने का योग है या नहीं पता चलता है.
Foreign Travel Yoga किस लग्न में कौन से योग से विदेश यात्रा संभव है
इसी तरह जीवन में यात्रा को कुंडली के तीसरे भाव से बताया जा सकता है। कुंडली में अष्टम भाव समुद्री यात्रा का प्रतीक है और सप्तम और नवम भाव लंबी विदेश यात्राओं या व्यापार, व्यापार और लंबे समय तक विदेश में रहने का संकेत देता है। यदि जातक विदेश में कोई कार्य करने की योजना बना रहा है तो इस अध्ययन के आधार पर परिणाम का आकलन किया जा सकता है।
कई ज्योतिष कुंडली में दिखाए गए भावों के अलावा लग्न और लग्न के आधार पर विदेश यात्रा से जुड़े योग बताए जाते हैं। लग्न और लग्न की स्थिति हमारे जीवन को बहुत प्रभावित करती है। आइए जानते हैं किस लग्न में कौन से योग किए जाते हैं;
यदि जन्म कुण्डली के किसी भी भाव में लग्न और सप्तम एक साथ मेष लग्न में हों या उनमें परस्पर दृष्टि हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है. इसी प्रकार यदि शनि मेष लग्न में अष्टम भाव में स्थित हो और द्वादश भाव बली हो तो जातक कई बार विदेश यात्रा करता है।
यदि मेष लग्न, लग्न और भाग्येश अपने-अपने स्थान पर हों या उनमें स्थान परिवर्तन हो रहा हो तो विदेश यात्रा की संभावना बनी रहती है। मेष लग्न में अष्टम भाव में बैठा शनि जातक को जन्म स्थान से दूर ले जाता है और उसे बार-बार विदेश यात्रा कराता है।
इसी प्रकार यदि वृष लग्न में सूर्य और चंद्रमा बारहवें भाव में हों तो व्यक्ति न केवल विदेश यात्रा करता है, बल्कि विदेश में व्यापार और व्यापार में भी सफल होता है। यदि शुक्र वृष लग्न के केंद्र में हो और नवमेश नवम भाव में हो तो विदेश यात्रा के योग बनते हैं।
यदि शनि वृष लग्न के साथ अष्टम भाव में स्थित हो तो जातक कई बार विदेश जाता है। मंगल यदि भाग्य भाव में राहु के साथ या वृष लग्न में तृतीय भाव में स्थित हो तो जातक सैनिक के रूप में विदेश यात्रा करता है। यदि लग्न में राहु, वृष लग्न में दसवें या बारहवें भाव में हो तो विदेश यात्रा के योग बनते हैं।
मिथुन लग्न के साथ लग्न और नवमेश का स्थान परिवर्तन हो तो विदेश यात्रा योग बनता है। मिथुन लग्न के साथ शनि वक्री होकर लग्न में बैठा हो तो कई बार विदेश यात्राएं होती हैं। यदि लग्न में राहु या केतु अनुकूल स्थिति में हो और नवम और बारहवें भाव में शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो विदेश यात्रा का योग भी बनता है।
कर्क लग्न लग्न और चतुर्वेश बारहवें भाव में स्थित होने पर जातक को विदेश यात्रा का अवसर मिलता है। कर्क लग्न यदि लग्न नवम भाव में स्थित हो और चतुर्थ भाव छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो कई विदेश यात्राएं होती हैं। लेकिन लग्न बारहवें भाव में हो या बारहवें भाव में हो तो काफी संघर्ष के बाद विदेश यात्रा होती है।
सिंह लग्न में बृहस्पति, चंद्रमा तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में बैठा हो तो विदेश यात्रा की संभावना बनती है। सिंह लग्न में यदि लग्न के बारहवें भाव में स्थित ग्रह अपनी उच्च राशि में हों तो विदेश यात्रा का योग बनता है। यदि सिंह लग्न में हो और मंगल और चंद्रमा बारहवें भाव में युति में हों तो विदेश यात्रा होती है। यदि सूर्य सिंह लग्न में बैठा हो और नवम और बारहवें भाव में शुभ ग्रह हों तो विदेश यात्रा का योग बनता है।
यदि सूर्य कन्या लग्न में स्थित हो और नवम और बारहवें भाव पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो विदेश यात्रा योग बनता है। लेकिन यदि सूर्य अष्टम भाव में स्थित हो तो जातक आस-पास के देशों की यात्रा करता है। यदि कन्या लग्न में लग्न, भाग्येश और द्वादशेश का आपसी संबंध हो तो जातक को जीवन में विदेश यात्रा के अनेक अवसर प्राप्त होते हैं। बुध और शुक्र का कन्या लग्न में गोचर विदेश यात्रा का योग बनाता है।
तुला लग्न में नवमेश बुध द्वादश भाव में उच्च का होकर स्वराशि में स्थित है, राहु से प्रभावित है, फिर राहु की दशा में विदेश यात्रा करता है। यदि चतुर्थेश और नवमेश में संबंध हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। यदि नवम या दशम भाव का आपसी संबंध या युति या दृष्टि संबंध हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। तुला लग्न में शुक्र और सप्तम में चन्द्रमा हो तो भी जातक विदेश यात्रा करता है।
यदि वृश्चिक लग्न में पंचम भाव में केवल बुध हो और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो कम उम्र में विदेश यात्रा होती है। यदि चंद्रमा वृश्चिक लग्न में लग्न में हो, मंगल नवम भाव में स्थित हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। यदि वृश्चिक लग्न के सप्तमेश पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो और वह बारहवें भाव में स्थित हो तो विवाह के बाद निश्चित रूप से विदेश यात्रा का अवसर मिलता है। यदि वृश्चिक लग्न में लग्न सप्तम में स्थित हो और शुभ ग्रहों से युक्त हो तो जातक विदेश में बसता है।
धनु लग्न में अष्टम भाव में कर्क राशि का चंद्रमा जातक को कई वर्षों के बाद विदेश यात्रा कराता है। यदि पाप ग्रह जैसे मंगल, शनि आदि बारहवें भाव में बैठे हों तो भी विदेश यात्रा का योग बनता है। यदि चंद्रमा धनु लग्न के अष्टम भाव में हो, गुरु और नवमेश की युति नवम भाव में हो तो विदेश यात्रा की प्रबल संभावना होती है। धनु लग्न में बुध और शुक्र की महादशा होने के कारण जातक को कई देशों की यात्रा करनी पड़ती है।
मकर लग्न में राहु या केतु की सप्तम, अष्टम, नवम या द्वादश के साथ युति विदेश यात्रा का योग बनाती है। मकर लग्न, चतुर्थ और दशम भाव में चर राशि के किसी भी स्थान पर शनि हो तो विदेश यात्रा होती है। यदि सूर्य मकर लग्न में अष्टम भाव में हो तो कई विदेश यात्राएं करनी पड़ती हैं।
कुंभ लग्न में नवमेश और लग्न का गोचर विदेश यात्रा का योग बनाता है। कुम्भ लग्न में यदि भाग्येश बारहवें भाव में उच्च का हो तो दशम भाव में सूर्य और मंगल की युति भी विदेश यात्रा के योग बनाती है। है।
मीन लग्न में शुभ (ग्यारहवें) भाव में पंचम भाव, द्वितीय भाव और नवम भाव की युति विदेश यात्रा का योग बनाती है। मीन लग्न में यदि लग्न गुरु नवम भाव में स्थित हो और चतुर्थ भाव बुध छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तो कई बार विदेश यात्रा के योग बनते हैं। मीन लग्न में शुक्र यदि चन्द्रमा से छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तो विदेश यात्रा का अवसर मिलता है। यदि चंद्रमा मीन राशि में लग्न में हो और शुक्र दशम भाव में हो तो व्यक्ति को कई देशों की यात्रा करने का अवसर मिलता है।