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अपना लग्न कैसे जाने और उसकी पहचान क्या होती है

अपना लग्न कैसे जाने पूरी विधि से

rajendra-xda by rajendra-xda
May 20, 2022
in Astrology, Birthday facts, Devi Devta, Dharam, Recommend, Vastu
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अपना लग्न कैसे जाने और उसके फायदे और नुक्सान भी
अपना लग्न कैसे जाने

लग्न क्या है अपना लग्न कैसे जाने और उसके बारे में जैसे की कमजोर लग्न,लग्न सारणी,सबसे अच्छा लग्न,लग्न राशि और चंद्र राशि

अपना लग्न कैसे जाने और हमसे जुड़े रहने के लिए हमें फॉलो करे-ज्योतिष्प्रदीप पेज 

मेष लग्न

इस लग्न में जन्म लेने वाला जातक का जन्म पुराने घर में होता है। उसके मकान का द्वार पूर्व में होता है। प्रसव के समय माता का सिर पूर्व दिशा में होता है। माता ने प्रसव के समय लाल वस्त्रा पहने थे व मीठा भोजन किया था। प्रसव में कष्ट हुआ था और प्रसव जमीन पर हुआ था। पैदा होते ही जातक बहुत रोया था। कमरे में एक या तीन और औरतें होती है। बालक का मुख कुछ श्यामता वाला होता है। नेत्रा भूरें प्रकृति वात श्लेष्म कद छोटा व शरीर दृढ होता है। इसको चौथे ,ग्यारहवे, सोलहवे, चवालीसवे और अठ्ठावनवे वर्ष में कष्ट होगा। इन कष्टों को कम करने के लिए गौदान, तुलादान करवाना अच्छा रहेगा।

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वृषभ

इस लग्न में जन्म लेने वाला जातक का जन्म नये घर में होता है। उसके मकान का द्वार दक्षिण में होता है। प्रसव के समय माता का सिर दक्षिण दिशा में होता है। माता ने प्रसव के समय सफेद वस्त्रा पहने थे व शुष्क शाकादि भोजन किया था। प्रसव में अधोमुख होकर पाद से प्रसव हुआ था। पैदा होते ही जातक उच्च स्वर में रोया था। कमरे में तीन या चार और औरतें होती है। बालक का मुख कुछ गोरे रंगवाला होता है। स्वरूप सुन्दर प्रकृति रक्तपित्त होती है। इसको पहले, दूसरे, आठवें, तेतीस, चवालीसवे और इकसठवे वर्ष में कष्ट होगा। इन कष्टों को कम करने के लिए अन्नदान व ब्राहमण को भोजन करवाना अच्छा रहेगा।

मिथुन

इस लग्न में जन्म लेने वाला जातक का जन्म नये घर में होता है। उसके मकान का द्वार पश्चिम में होता है। प्रसव के समय माता का सिर पश्चिम दिशा में होता है। माता ने प्रसव के समय पीलें वस्त्रा पहने थे व नमकीन भोजन किया था। माता के दाहिने अंग में कोई चिन्ह होता है। प्रसव चारर्पाइ पर व सिर से हुआ था। पैदा होते ही जातक उच्च स्वर में रोया था। कमरे में तीन या पाॅंच और औरतें होती है। माता के स्तनों में से दूध कम उतरता है। बालक के नेत्रा में कोइ्र्र रोग होता है। स्वभाव चंचल व प्रकृति बल्गमी होती है। इसको भूख कम लगेगी, बुद्धि विलक्षण होता है। माता को प्रसव से पूर्व ज्वर होता है। इसको चौथे ,दसवेे, चाहदवेें, अडतीस, और अठ्ठावनवे वर्ष में कष्ट होगा। इन कष्टों को कम करने के लिए शिवजी की पूजा व ब्राहमण को भोजन करवाना अच्छा रहेगा।

कर्क

इस लग्न में जन्म लेने वाला जातक का जन्म नये घर में होता है। उसके मकान का द्वार उत्तर दिशा में होता है। प्रसव के समय माता का सिर उत्तर दिशा में होता है। माता ने प्रसव के समय पुराने सफेद या लाल वस्त्रा पहने थे व मधुर शीतल भोजन किया था। प्रसव भूमि पर हुआ था। पैरों से जन्म हुआ था। पैदा होते ही जातक उच्च स्वर में रोया था। कमरे में चार या पाॅंच और औरतें होती है। बालक के बाॅंये अंग में चिन्ह होगा। बालक का सिर मोटा आॅखे चन्चल होती है। रंग गोरा,कद लम्बा एवं शरीर कोमल होगा। प्रकृति वात श्लेष्म होती है। इसको पाॅंचवे, पच्चीसवें, चालीसवें, अडतालीसवे और बासठवे वर्ष में कष्ट होगा। इन कष्टों को कम करने के लिए छायापात्र ,छतरी व तुलादान अच्छा रहेगा।

सिंह

इस लग्न में जन्म लेने वाला जातक का जन्म नयेे घर में होता है। उसके मकान का द्वार पूर्व में होता है। प्रसव के समय माता का सिर पूर्व दिशा में होता है। माता ने प्रसव के समय लाल व चित्रा विचित्रा वस्त्रा पहने थे व शाक व खट्टा भोजन किया था। प्रसव में कष्ट हुआ था और प्रसव जमीन पर हुआ था। पैदा होते ही जातक बहुत रोया था। कमरे में तीन या पाॅंच और औरतें होती है। बालक की पीठ पर चिन्ह होता है। केश घने, नाक लम्बी,कद छोटा शरीर कोमल व गोरा होता है। हठीला ,क्रूर  स्वभाव ,प्रकृति कफ पित्त होता है। इसको पाॅंचवे, तेहरहवे, अठ्ठाइसवे, छत्तीसवें, अडतालीसवे वर्ष में कष्ट होगा। इन कष्टों को कम करने के लिए सूर्य पूजन व सूर्य कवच का पाठ के साथ हल्दी से काॅंसी की थाली में सूर्य यन्त्रा बनवा कर रविवार को प्रातः सींचना अच्छा रहेगा।

कन्या

इस लग्न में जन्म लेने वाला जातक का जन्म नये घर में होता है। उसके मकान का द्वार उत्तर दिशा में होता है। प्रसव का स्थान घर के दक्षिण दिशा में होता है। पिता घर से बाहर होता है। माता ने प्रसव के समय पुराने लाल रंग के वस्त्रा पहने थे व मधुर भोजन किया था। प्रसव उची या खाट पर हुआ था। पैरों से जन्म हुआ था। पैदा होते ही जातक कम रोया था। कमरे में चार या पाॅंच और औरतें होती है। बालक का रंग गोरा होने के साथ उसके गले एवं जाॅंघ में चिन्ह होता है। इसको चोथे, सोलहवे, तेइसवें, छत्तीसवे  और पचपनवेे वर्ष में कष्ट होगा। इन कष्टों को कम करने के लिए मूॅंगदान, गौदान व तुलादान करना अच्छा रहेगा।

तुला

इस लग्न में जन्म लेने वाला जातक का जन्म कुछ नये घर में होता है। उसके मकान का द्वार पश्चिम दिशा में होता है। प्रसव का स्थान घर के पश्चिम दिशा में होता है। माता ने प्रसव के समय सफेद रंग के वस्त्रा पहने थे व कुछ भोजन किया था और ठण्डा पानी पिया था। घर में कुछ लडाई झगडा हुआ होता है। प्रसव भूमि पर हुआ था। पैदा होते ही जातक धीमा रोया था। कमरे में तीन या पाॅंच और औरतें होती है उनमें एक कन्या भी थी। बालक का रंग जर्दी पर होने के साथ उसके बदन पर फोडे होते है तथा शरीर पतला होता है। इसको आठवे, पन्द्रहवहवे, इक्कतीसवें, पैतीसवे , बासठवें और चैसठवे वर्ष में कष्ट होगा। इन कष्टों को कम करने के लिए चावलदान, गौदान व नवग्रह पूजन व होम करना अच्छा रहेगा।

वृश्चिक

इस लग्न में जन्म लेने वाला जातक का जन्म पुराने घर में होता है। उसके मकान का द्वार उत्तर दिशा में होता है। प्रसव के समय माता का सिर उत्तर या दक्षिण दिशा में होता है। माता ने प्रसव के समय पुराने लाल रंग के वस्त्रा पहने थे व साधारण भोजन किया था। प्रसव भूमि  पर हुआ था। पैदा होते ही जातक कम रोया था। कमरे में चार या पाॅंच और औरतें होती है। पिता क्लेश में होता है। बालक के केश लम्बे व काले उसके गले पीडा एवं पीठ में चिन्ह होता है। इसका रंग काला ही होता है। इसको ग्याहरवेेे, अठ्ठाइसवें, इडतीसवे , बावनवे और बासठवेे वर्ष में कष्ट होगा। इन कष्टों को कम करने के लिए तुलादान करना ,मीठा भोजन का दान करवाना अच्छा रहेगा।

धनु

इस लग्न में जन्में हुए बालक की माता का सिर पूर्व में होता है।इसके मकान का द्वार पूर्व दिशा में होता है। प्रसव का स्थान घर के दक्षिण भाग में होता है। माता ने प्रसव के समय पुराने लाल रंग के वस्त्रा पहने थे व मधुर भोजन किया व जल पिया था। प्रसव उची या खाट पर हुआ था। पैदा होते ही जातक लम्बा रोया था। कमरे में एक या पाॅंच और औरतें होती है। बालक का रंग गोरा होने के साथ आकृति सुन्दर नेत्रा विशाल सिर उॅंचा उसके छाती पर चिन्ह होता है। इसको दूसरेे, दसवे, अठ्ठारवें, इकतीसवे ,चैतीसवे और बयालीसवेे वर्ष में कष्ट होगा। इन कष्टों को कम करने के लिए शिवजी की पूजा व ब्राहमण भोजन कराना अच्छा रहेगा।

मकर

इस लग्न में जन्में हुए बालक की माता का सिर दक्षिण में होता है। इसका मकान पुराना व मकान का द्वार उत्तर या दक्षिण दिशा में होता है। प्रसव का स्थान घर के पश्चिम भाग में होता है। माता ने प्रसव के समय पुराने मटमेले वस्त्र पहने थे व शाकादि के साथ भोजन किया व ठण्डा जल पिया था। प्रसव भूमि पर हुआ था। पैदा होने के बाद जातक अर्ध स्वर मे रोया था। कमरे में एक या पाॅंच और औरतें होती है। बालक के केश घने नाक मोटी रंग काला सिर उॅंचा होता है। इसको पाॅंचवेेे, तेहरवे, सत्तइसवें, छत्तीसवे  ,सत्तावनवे , बासठवे और सत्तासीवेे वर्ष में कष्ट होगा। इन कष्टों को कम करने के लिए शिवजी की पूजा स्वर्ण दान ,तेल व माॅंस व छतरी का दान कराना अच्छा रहेगा।

कुम्भ

इस लग्न में जन्में हुए बालक की माता का सिर पश्चिम में होता है।इसके मकान का बहुत सा भाग पुराना होता है। इा मकान का द्वार पूर्वोत्तर दिशा में होता है। प्रसव का स्थान घर के दक्षिण पश्चिम भाग में होता है। माता ने प्रसव के समय पुराने काले रंग के या मैले  वस्त्र पहने थे व कम्बल ओढा था। साधारण कसैला या चटपटा भोजन किया । पिता घर पर नही था। उसक जन्म स्थान में तीन या चार और औरतें होती है। बालक का भूमि पर जन्म होता है। जन्म होने के बाद बालक थोडा सा रोया। बालक के होठ मोटे मस्तक लम्बा प्रकृति गरम कद नाटा नेत्रा में रोग होता है। इसको दूसरेे, अठ्ठाइसवे, तेतीसवे ,अडतालीसवे और चैसठवेे वर्ष में कष्ट होगा। इन कष्टों को कम करने के लिए तुलादान भैसदान करना अच्छा रहेगा।

मीन

इस लग्न में जन्में हुए बालक की माता का सिर उत्तर में होता है। इसके मकान का द्वार दक्षिण दिशा में होता है। मकान का कुछ हिस्सा पुराना होता है। प्रसव का स्थान घर के व ठण्डा जल पिया था। प्रसव उची या खाट पर हुआ था। पिता घर में ही होता है। पैदा होते ही जातक देर से रोया था। कमरे में तीन या पाॅंच और औरतें होती है। पलंग का पाया टूटा हुआ होता है। बालक का रंग गोरा होने के साथ नाक चपटी सिर उॅंचा आँखे  भूरी घुँघराले  बाल और बलगमी प्रकृति होती है। इसको पहलेे, आठवे, तेहरवें, छत्तीसवे व अडतालीसवेे वर्ष में कष्ट होगा। इन कष्टों को कम करने के लिए लड्डूओ का दान ,गौदान व ग्रह शान्ति पाठ कराना अच्छा रहेगा।

 

अपना लग्न कैसे जाने ये तो आपको पता चल ही गया होगा और भी वास्तु से जुड़े सवाल और हमसे जुड़े रहने के लिए हमें फॉलो करे-ज्योतिष्प्रदीप पेज 

 

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